सोने की कीमत 2025: भारत में सोना ₹1,20,000 पार, आरबीआई की गोल्ड रिजर्व रणनीति और तेजी के असली कारण”

सोने की कीमतों में रिकॉर्ड तेजी: क्या है असली वजह और आरबीआई की रणनीति?

2025 में सोने की कीमतों ने भारत और पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया है। इस साल सोना 40 से ज्यादा बार अपने ऑल टाइम हाई पर पहुंच चुका है। भारत में 10 ग्राम सोने की कीमत ₹1,20,000 के पार जा चुकी है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर इतनी तेजी क्यों आ रही है? इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि सोने की इस रैली के पीछे क्या कारण हैं और आरबीआई का गोल्ड रिजर्व इस पर क्या रणनीति अपना रहा है।

सोने की तेजी के पीछे के कारण

सोने के दाम में तेजी को लेकर मार्केट में कई तरह की बातें चल रही हैं। एक्सपर्ट्स के अनुसार इसके मुख्य कारण निम्न हैं:

वैश्विक अनिश्चितता

दुनिया के कई देशों में चल रही आर्थिक और राजनीतिक अस्थिरता निवेशकों को सुरक्षित निवेश की ओर धकेल रही है। सोना हमेशा संकट के समय सुरक्षित निवेश माना गया है।

सेंट्रल बैंकों की खरीदारी

कहा जा रहा है कि कई केंद्रीय बैंक जैसे कि अमेरिका, जर्मनी, रूस आदि अपने गोल्ड रिजर्व को बढ़ा रहे हैं, जिससे सोने की कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है।

सोशल मीडिया थ्योरी और अमेरिका का कर्ज

कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका अपने बढ़ते कर्ज को कम करने के लिए गोल्ड रिजर्व की कीमत को रिसेट कर सकता है। इससे डॉलर की कीमत पर असर पड़ सकता है और महंगाई बढ़ सकती है।

आरबीआई का कदम: गोल्ड रिजर्व में कोई बढ़ोतरी नहीं

दिलचस्प बात यह है कि पिछले दो महीनों से भारत का केंद्रीय बैंक, आरबीआई, अपने गोल्ड रिजर्व में कोई बड़ा इजाफा नहीं कर रहा है।

वर्तमान में भारत के पास 880 टन सोना है, जो देश के कुल फॉरेक्स रिजर्व का 12.5% है।

यह कदम यह संकेत दे रहा है कि भारत शायद इस तेजी को गंभीरता से ले रहा है और लंबी अवधि की रणनीति (लॉन्ग टर्म स्ट्रेटजी) पर काम कर रहा है।

अगर आरबीआई ने अचानक सोना खरीदा होता तो इससे रुपये और डॉलर पर असर पड़ सकता था।

इसलिए फिलहाल सोने की खरीद पर रोक लगाना मार्केट की स्थिरता और मुद्रा संतुलन के लिए अहम माना जा रहा है।

दुनिया में सोने के बड़े रिजर्व

दुनिया में सबसे ज्यादा सोना अमेरिका के पास है। इसके बाद जर्मनी, इटली, फ्रांस, रूस और चीन आते हैं। वर्तमान स्थिति इस प्रकार है:

देश सोने का रिजर्व             (टन में)

अमेरिका                         8133

जर्मनी                            3350

इटली                            2452

फ्रांस                             2437

रूस                               2330

चीन                              2301

स्विट्जरलैंड                    1040

भारत                             880

जापान                           846

तुर्की                              837

 

यह आंकड़ा दर्शाता है कि भारत ने अपने सोने के रिजर्व को सुरक्षित स्तर पर बनाए रखा है, ताकि किसी भी ग्लोबल संकट में इसे तुरंत इस्तेमाल किया जा सके।

 

सोने में निवेश का इतिहास

इतिहास की बात करें तो सोने ने लंबे समय में निवेशकों को शानदार रिटर्न दिया है।

1970 से अब तक सोने ने 649 गुना रिटर्न दिया है।

यानी यदि किसी ने 1970 में सोना खरीदा होता, तो उसका पैसा हजारों गुना बढ़ चुका होता।

इसलिए सोना निवेश के लिहाज से लंबी अवधि का सुरक्षित विकल्प माना जाता है।

अमेरिका और सोने की चाल

अमेरिका अभी अपने गोल्ड रिजर्व को रिकॉर्ड में 42.22% ऑन कीमत दिखा रहा है। यदि अमेरिका ने इसकी कीमत आज के बाजार भाव पर रिसेट किया, तो उसे तुरंत मुनाफा मिल सकता है और अपने कर्ज को कम करने का मौका मिल सकता है।

हालांकि, इससे डॉलर की कीमत और महंगाई पर असर पड़ सकता है। लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि सोना मजबूत होने के बावजूद डॉलर मजबूत रह सकता है, इसलिए सोने की इस रैली का असर सिर्फ कीमतों पर ही नहीं बल्कि वैश्विक आर्थिक रणनीति पर भी पड़ रहा है।

निष्कर्ष

सोने की कीमतों में तेजी सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में देखी जा रही है।

आरबीआई का गोल्ड रिजर्व में कोई इजाफा ना करना संकेत देता है कि भारत लंबी अवधि की रणनीति पर काम कर रहा है।

वैश्विक अनिश्चितता, सेंट्रल बैंक की खरीदारी और अमेरिका का कर्ज सोने की इस रैली के मुख्य कारण हैं।

भारत का 880 टन का सोना और इसकी रणनीति निवेशकों और मार्केट पर नजर रखने के लिहाज से महत्वपूर्ण है।

इस रैली के चलते निवेशक सोने के दाम और मार्केट की हलचल पर लगातार नजर बनाए हुए हैं।

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